DC generator in Hindi इस आर्टिकल में हम आज डीसी जनरेटर के बारेमे जानने वाले है इसका कार्य सिद्धांत, इसकी बनावट और इसके प्रकार, साथी साथ इनका इस्तेमाल कहा पर किया जाता है और इससे जुड़े प्रश्न उत्तर भी जानेंगे |
डीसी जनरेटर के बारेमे पूरी जानकरी लेने से पहले हमें कुछ बाते जननी होंगी की जनरेटर के दो प्रकार होते है AC generator और DC generator इन दोनों का काम काम होता है की मैकेनिकल पावर को इलेक्ट्रिकल पावर में रूपांतरित करना |
AC generator से हमें ac पावर याने प्रत्यावर्ती धारा मिलती है वही DC generator से dc पावर याने डायरेक्ट पावर मिलती है |
DC Generator in Hindi (डीसी जनरेटर):-
इलेक्ट्रिकल जनरेटर इस तरह की मशीन होती है की उसकी मदद से मैकेनिकल पावर या एनर्जी को इलेक्ट्रिकल पावर या एनर्जी में रूपांतरित किया जाता है |
इसका कार्य सिद्धांत dynamicaly induced e.m.f पर निर्भर होता है | जब भी कंडक्टर मैग्नेटिक फ्लक्स को कट करता है तब dynamicaly induced e.m.f उत्पन्न होता है जोकि Faraday’s Law of electromagnetic induction के हिसाब से होता है | अगर सर्किट बंद हो तो उस e.m.f की वजह से सर्किट में करंट बहता है |
निचे दिखाए चित्र में हम मैग्नेटिक फील्ड, e.m.f को देख सकते है |

इलेक्ट्रिकल जनरेटर में दो मुख्य हिस्से होते है एक होता है मैग्नेटिक फील्ड और दूसरा होता है कंडक्टर |
ऊपर दिखाए चित्र में हम रेक्टंगुलर कॉयल ABCD को देख सकते है उसके दोनों साइड में परमानेंट मैगनेट को भी देख सकते है | coil के दो छोर स्लिप्रिंग a और स्लिप्रिंग b से जुड़े होते है, जो की एक दुसरे से इंसुलेटेड होते है |
घुमने वाले coil को आर्मेचर कहा जाता है और मैगनेट को field magnet.
Types of D.C generator (डीसी जनरेटर के प्रकार):-
जनरेटर की फील्ड किस तरह से एक्साइट होती है उसके आधार पर दिसी मोटर के दो प्रकार होते है |
- Separately excited generator (सेपरेटली इक्ˈसाइटिड् जनरेटर)
- Self-excited generator (सेल्फ इक्ˈसाइटिड् जनरेटर) :- a)Shunt (शंट), b)Series (सीरीज), c) Compound (कंपाउंड)
1) Separately excited generator (सेपरेटली इक्ˈसाइटिड् जनरेटर):-
यह जनरेटर वह होते है जिनके फील्डमैगनेट को energinsed करने के लिए अतिरिक्त d.c करंट की जरुरत पड़ती है |
निचे दिखाए चित्र में हम separately excited generator के कनेक्शन को देख सकते है |

2) Self-excited generator (सेल्फ इक्ˈसाइटिड् जनरेटर):-
इन जनरेटर में खुदके उत्पन्न किये गए करंट की मदद से फील्ड को excite किया जाता है | आवासीय चुंबकत्व की वजह से पोल पर कुछ फ्लक्स हमेशा ही रहते है, जब आर्मेचर घुमता है तब e.m.f और करंट induced हो जाता है उसकी वजह से जनरेटर सेल्फ excitedहोता है |
Self excited generator के उसके winding के हिसाब से तिन प्रकार होते है जो की a)Shunt (शंट), b)Series (सीरीज), c) Compound (कंपाउंड)
a) Shunt wound (शंट वूंड):-
इस प्रकार में फील्ड विन्डिंग आर्मेचर कंडक्टर के समानांतर याने की parallel में होती है, और इनमे वोल्टेज फुल होता है |

b) Series wound (सीरीज वूंड):-
इस प्रकार में फील्ड विन्डिंग आर्मेचर कंडक्टर के शृंखला याने की series में होती है, और इनमे वोल्टेज फुल होता है | इसमे से फुल लोड करंट जाता है इसकी वजह से इनमे कम टर्न होते है और वायर का अकार बड़ा होता है |इनका इस्तेमाल कुछ खास जगहों पर ही किया जाता है जैसे की बूस्टर में |

c) Compound wound (कंपाउंड वूंड):-
इसमे सीरीज और शंट के कॉम्बिनेशन का इस्तेमाल किया जाता है, यह या तो शोर्ट शंट या long शंट होती है | इसमे शंट फील्ड सीरीज फील्ड से ज्यादा स्ट्रोंग होती है |

Construction DC generator in Hindi (डीसी जनरेटर कि बनावट):-
जनरेटर की बनावट किस तरह की होती है इसका चित्र हम निचे dc generator diagram in hindi में देख सकते है जिसके हिस्से निचे दिए गये है |
- Magnetic frame or yoke (मैग्नेटिक फ्रेम और योक)
- Field coils or pole coils (फील्ड कॉइल्स और पोल कॉइल्स)
- Conductor (कंडक्टर)
- Armature winding (आर्मेचर वाइंडिंग)
- Brushes (ब्रुशेष)
- Bearing (बेअरिंग)
- Commutator (कम्यूटेटर)
- Armature Core (आर्मेचर कोर)
- Pole Core (पोल कोर)
- Pole shoes (पोल शु)

1) Magnetic frame or yoke (मैग्नेटिक फ्रेम और योक):-
जैसे की ऊपर दिखाए चित्र में हम देख सकते है की yoke दो काम करता है एक यह पोल को मैकेनिकल सपोर्ट देता है साथी साथ सुरक्षा कवच की तरह काम करता है और दूसरा काम ये करता है की पोल की वजह से उत्पन्न हुए मैग्नेटिक फ्लक्स को ले जाता है |
अगर जनरेटर छोटा हो तो उसमे वजन के बजाये उसके कीमत को ज्यादा महत्त्व दिया जाता है | योक cast iron से बना होता है, लेकिन अगर जनरेटर बड़ा हो तब cast steel या फिर rolled steel का इस्तेमाल किया जाता है |
अभी नयी प्रक्रिया में रोलिंग स्टील स्लैब होते है जो की सिलिंडर के आकार में होते है उसके बाद उन्हें welding किया जाता है | DC मोटर के फीट याने सहारा देने वाला हिस्सा भी इसी पर लगा होता है | इसकी मैकेनिकल strength अछि होती है |
2) Pole cores and pole shoes (पोल कोर और पोल शू):-
फील्ड मैगनेट में पोल कोर और पोल शू होते है | पोल शु के दो काम होते है एक ये की वो air gap में फ्लक्स का विस्तार करते है और दूसरा काम ये करते है की exciting coil के लिए support का काम करती है |
पोल की बनावट दो प्रकार से होती है | पहले प्रकार में पोल कोर कास्ट आयरन या कास्ट स्टील से बनी होती है लेकिन पोल शु लैमिनेटेड की होती है |
दुसरे प्रकार के कंस्ट्रक्शन में याने मॉडर्न डिजाईन में पोल कोर और पोल शु पतले laminations से बनी होती है जो की 1 mm से 0.25 mm तक के होते है |
3) Armature Core (आर्मेचर कोर):-
यह सिलिंडर या ड्रम के आकार में होता है और यह स्टील डिस्क जो कि सर्कुलर अकार में होते है उनसे बनी होती है और इनकी मोटाई 0.5 mm तक होती है | इसमे जो स्लॉट होते है वो या तो डाई कट या फिर पंच किया होता है |
छोटे मशीन में आर्मेचर स्टापिंग डायरेक्टली अन्दर वाले डायमीटर में keyed की होती है | lamonation इसलिए भी की जाती है की air duct बन सके ताकि हवा वहा से पास हो सके और आर्मेचर ठंडा रह सके |
Lamination का इस्तेमाल इसलिए किया जाता है ताकि eddy current की वजह से होने वाले losses को कम किया जा सके, I2R losses भी कम हो सके |
4) Armature winding (आर्मेचर वाइंडिंग):-
पहले तो ये वाइंडिंग फॉर्मर वौंड होती है |इन्हे पहले बनाते समय रेक्टंगुलर अकार में होते है उसके बाद coil puller की मदद से आकार दिया जाता है | कंडक्टर को आर्मेचर स्लॉट में रखा जाता है | इसमे जो इंसुलेशन इस्तेमाल किया जाता है वो wooden या fabric wedges का होता है |
5) Commutator (कम्यूटेटर):-
आर्मेचर कंडक्टर से करंट को कलेक्ट करने काम कम्यूटेटर करता है | यह सिलिंडर के अकार में होता है और इसे बनाने के लिए wedge-shaped segment जिनकी conductivity ज्यादा होती है ये कॉपर से बने होते है |
यह segments एक दुसरे से इंसुलेटेड होते है इसके लिए mica का इस्तेमाल किया जाता है | जितने segments होगे उतने ही आर्मेचर coil होती है |
6) Brushes and bearing (ब्रशेष और बेअरिंग):-
कम्यूटेटर से करंट को जमा करने का काम ब्रश का होता है, और यह आमतौर पर कार्बन या फिर ग्रेफाइट के बने होते है और उनका आकार आयताकार होता है | ब्रश को ब्रश होल्डर में फिट किया जाता है, और यह ब्रश होल्डर स्पिंडल पर माउंट किया जाता है |
स्पिंडल के ऊपर कितने ब्रश होंगे यह करंट की magnitude के ऊपर तय किया जाता है |
Bearing की बात की जाये तो विश्वसनीयता की वजह से बॉल बेअरिंग का इस्तेमाल किया जाता है | अगर ज्यादा मजबूत चाहिए तब रोलर बेअरिंग का इस्तेमाल किया जाता है |
इनमे घर्षण कम से कम हो इसके लिए इनमे तेल का इस्तेमाल किया जाता है |
DC generator working principle in hindi (डीसी जनरेटर कार्य सिधांत):-
DC generator में मैकेनिकल पॉवर को इलेक्ट्रिकल पॉवर में रूपांतरित किया जाता है
इसका कार्य सिद्धांत dynamicaly induced e.m.f पर निर्भर होता है | जब भी कंडक्टर मैग्नेटिक फ्लक्स को कट करता है तब dynamicaly induced e.m.f उत्पन्न होता है जोकि Faraday’s Law of electromagnetic induction के हिसाब से होता है | अगर सर्किट बंद हो तो उस e.m.f की वजह से सर्किट में करंट बहता है |
DC generator Losses in hindi (डीसी जनरेटर लोसेस):-
- Copper losses (कॉपर लोस) – Armature Cu loss, Shunt Cu loss, Series Cu loss.
- Iron losses (आयरन लोस) – Hysteresis, Eddy current loss
- mechanical losses (मैकेनिकल लोस) – Friction loss, Windage loss
1. Copper losses (कॉपर लोस्सेस):-
- इसमे तिन प्रकार के लोस्सेस होते है a) Armature Cu loss, b) Shunt Cu loss, c) Series Cu loss.
- Armature Cu loss (आर्मेचर cu लोस):- इसे Ia2Ra से दर्शाया जाता है, जिसमे Ra armature और interpoles, series field winding का resistance होता है | यह लोस्सेस फुल लोड के 30 से 40% होते है |
- Field copper loss. अगर शंट जनरेटर की बात की जाये तो तो उसमे ये लोस एकसमान होते है Ish2Rsh. और सीरीज जनरेटर के मामले में यह Ise2Rse जिसमे Rse सीरीज फील्ड विन्डिंग का रेजिस्टेंस होता है |
- यह लोस ब्रश के कांटेक्ट की वजह से होने वाले resistance से होते है | यह लोस आर्मेचर कॉपर लोस में आते है |
2) Iron loss (आयरन लोस):-
- इन लोस्सस को मैग्नेटिक लोस्सेस या कोर लोस्सेस भी कहा जाता है |
- इस लोस्सेस के दो प्रकार है hysteresis loss और eddy current loss, यह लोस्सेस constant होते है शंट और कंपाउंड वौंदजनरेटर के लिए क्यू की इनमे फील्ड current एकसमान बना रहता है |
- फुल लोड लोस्सेस में इन दोनों लोस्सेस का 20 से 30% हिसा होता है |
3) Mechanical losses (मैकेनिकल लोस्सेस):-
- इसमे friction loss याने की घर्षण की वजह से लोस होते है वह आते है जैसे की बेअरिंग और कम्यूटेटर में फ्रिक्शन |
- Windage loss या फिर air-friction loss जो की armatur के घुमाते समय होते है |
Power stages of dc generator (डीसी जनरेटर की पॉवर स्टेजेस):-
1) Mechanical Efficiency:-
ηm = total watts generated in armature / Mechanical power supplied = EgIa / output of the driving engine.
2) Electrical efficiency:-
ηe = watts available in load circuit / totalwatts generated = VI / EgIa
3) Overall or commercial efficiency:-
ηc = watts available in load circuit / mechanical power supplied
EMF equation of DC generator (डीसी जनरेटर का एमफ समीकरण ):-
Eg=(PΦNZ)/60A
Eg – जनरेटेड emf
P – टोटल नंबर ऑफ़ पोल
N – आर्मेचर रोटेशन स्पीड
Z – टोटल आर्मेचर कंडक्टर
Φ – मैग्नेटिकफ्लक्स
A – नंबर ऑफ़ पैरेलल पाथ
Application of DC generator (डीसी जनरेटर के इस्तेमाल):-
- इनका इस्तेमाल लैबोरेट्रीज में किया जाता है |
- DC motor को सप्लाई देने के काम के लिए इस्तेमाल किया जाता है |
- लाइटनिंग के लिए |
- battery को चार्ज करने के लिए |
- पोर्टेबल जनरेटर की तरह इस्तेमाल किया जाता है |
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